इंसान अगर एक बार ठान ले तो नमुमकिन को भी मुमकिन कर सकता है. हरियाणा के महम कसबे की नीतू की कहानी किसी फिल्म से काम नहीं है. ये वो महिला है जिसने अपनी हिम्मत और जज़्बे से असंभव को संभव किया और आज भारत की लाखो महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी.
नीतू के परिवार में उनके अलावा 5 भाई और थे. आर्थिक तंगी के कारण उनकी शादी 13 साल की उम्र में ही कर दी गयी. उनका पति मानसिक रूप से विकलांग 30 साल बड़ा था. नीतू शादी के तीसरे दिन ही घर से भाग निकली। नीतू की शादी दोबारा दूसरे शख्स से की गयी, जो उनके प्रति प्रेम का भाव रखता था मगर बेरोज़गार था. 14 साल की उम्र में उन्होंने जुड़वा बच्चो को जन्म दिया.
आर्थिक हालातों को देखते हुए नीतू के लिए किसी खेल के बारे में सोचना असंभव था. मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपना सपना पूरा किया।
शुरुआत में तो उन्हें अखाड़े में घुसने नहीं दिया जाता था, फिटनेस के लिए वो रोज़ सुबह 3 बजे उठ जाया करती थी और पूरे गांव के जागने से पहले लौट आया करती थी. शुरुआत में गांव वालों ने भी आपत्ति उठाई। मगर पति के साथ से वो आगे बढ़ती गई. गरीबी के कारण नीतू फटी ड्रेस और फटे जूतों में प्रैक्टिस करने को मजबूर थी. उनके साथी खिलाडी उनकी मदद करते थे, कोई अपनी पुराणी ड्रेस दे देता तो कोई थोड़ा बहुत घी दे देता था.
2011 में वह जिले सिंह नाम के व्यक्ति से मिली जो आज उनके कोच भी हैं. वह नीतू की हिम्मत और जज़्बे से बहुत प्रभावित हुए और उसी समय से उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू दिया। उसी साल नीतू ने एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में कांस्य पदक भी जीत लिया।उसके बढ़ नीतू ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
आज नीतू एक विश्व स्तरीय पहलवान बन चुकी हैं और देश के लिए कई मैडल भी जीत चुकी हैं. आज नीतू किसी परिचय की मोहताज नहीं. पूरा देश उनके बुलंद हौसले को सलाम करता है.
नीतू के परिवार में उनके अलावा 5 भाई और थे. आर्थिक तंगी के कारण उनकी शादी 13 साल की उम्र में ही कर दी गयी. उनका पति मानसिक रूप से विकलांग 30 साल बड़ा था. नीतू शादी के तीसरे दिन ही घर से भाग निकली। नीतू की शादी दोबारा दूसरे शख्स से की गयी, जो उनके प्रति प्रेम का भाव रखता था मगर बेरोज़गार था. 14 साल की उम्र में उन्होंने जुड़वा बच्चो को जन्म दिया.
आर्थिक हालातों को देखते हुए नीतू के लिए किसी खेल के बारे में सोचना असंभव था. मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपना सपना पूरा किया।
शुरुआत में तो उन्हें अखाड़े में घुसने नहीं दिया जाता था, फिटनेस के लिए वो रोज़ सुबह 3 बजे उठ जाया करती थी और पूरे गांव के जागने से पहले लौट आया करती थी. शुरुआत में गांव वालों ने भी आपत्ति उठाई। मगर पति के साथ से वो आगे बढ़ती गई. गरीबी के कारण नीतू फटी ड्रेस और फटे जूतों में प्रैक्टिस करने को मजबूर थी. उनके साथी खिलाडी उनकी मदद करते थे, कोई अपनी पुराणी ड्रेस दे देता तो कोई थोड़ा बहुत घी दे देता था.
2011 में वह जिले सिंह नाम के व्यक्ति से मिली जो आज उनके कोच भी हैं. वह नीतू की हिम्मत और जज़्बे से बहुत प्रभावित हुए और उसी समय से उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू दिया। उसी साल नीतू ने एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में कांस्य पदक भी जीत लिया।उसके बढ़ नीतू ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
आज नीतू एक विश्व स्तरीय पहलवान बन चुकी हैं और देश के लिए कई मैडल भी जीत चुकी हैं. आज नीतू किसी परिचय की मोहताज नहीं. पूरा देश उनके बुलंद हौसले को सलाम करता है.
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